9:59 am

नवगीत: 'बहुत है' -सलिल

नवगीत


आचार्य संजीव 'सलिल'


हवा में ठंडक

बहुत है...


काँपता है

गात सारा

ठिठुरता

सूरज बिचारा.

ओस-पाला

नाचते हैं-

हौसलों को

आँकते हैं.

युवा में खुंदक

बहुत है...



गर्मजोशी

चुक न पाए,

पग उठा जो

रुक न पाए.

शेष चिंगारी

अभी भी-

ज्वलित अग्यारी

अभी भी.

दुआ दुःख-भंजक

बहुत है...



हवा

बर्फीली-विषैली,

नफरतों के

साथ फैली.

भेद मत के

सह सकें हँस-

एक मन हो

रह सकें हँस.

स्नेह सुख-वर्धक

बहुत है...



चिमनियों का

धुँआ गंदा

सियासत है

स्वार्थ-फंदा.

उठो! जन-गण

को जगाएँ-

सृजन की

डफली बजाएँ.

चुनौती घातक

बहुत है...


नियामक हम

आत्म के हों,

उपासक

परमात्म के हों.

तिमिर में

भास्कर प्रखर हों-

मौन में

वाणी मुखर हों.

साधना ऊष्मक

बहुत है...


divyanarmada.blogspot.com
divynarmada@gmail.com

13 टिप्पणियाँ:

Unknown ने कहा…

shesh chingaari abhi bhi
jwalit agiyaari abhi bhi
waah
waah
____________badhaai !

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

बधाई!
शुभकामनाएँ!
"काव्य-कालिंदी" नाम
बहुत अच्छा लगा!

Unknown ने कहा…

bahut accha message diya he
shashi kumar verma udaipur

बेनामी ने कहा…

एक सुन्दर गीत...

Ashok Pandey ने कहा…

इस सुंदर नवगीत को साझा करने के लिए आभार।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

स्वागत है. शुभकामनायें.ये नया ब्लौग क्यों?

पंडितजी ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.

राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा…

बधाई! शुभकामनाएँ!

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

wah! narayan narayan

GANGA DHAR SHARMA ने कहा…

vary good blog.

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

उम्मीद ने कहा…

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
लिखते रहिये
चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
गार्गी

अवनीश एस तिवारी ने कहा…

सुन्दर रचना के लिए बधाई |

अवनीश तिवारी

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