मिथिला में सजी बरात
मिथिला में सजी बरात, सखी! देखन चलिए...
शंख मंजीरा तुरही बाजे, सजे गली घर द्वार.
सखी! देखन चलिए...
हाथी सज गए, घोड़ा सज गए, सज गए रथ असवार।
सखी! देखन चलिए...
शिव-बिरंचि-नारद जी नभ से, देख करें जयकार।
सखी! देखन चलिए...
रामजी की घोडी झूम-नाचती, देख मुग्ध नर-नार।
सखी! देखन चलिए...
भरत-लखन की शोभा न्यारी, जनगण है बलिहार।
सखी! देखन चलिए...
लाल शत्रुघन लगें मनोहर, दशरथ रहे दुलार।
सखी! देखन चलिए...
'शान्ति' प्रफुल्लित हैं सुमंत जी, नाच रहे सरदार।
सखी! देखन चलिए...
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1 टिप्पणियाँ:
रचना बहुत अच्छी लगी।
आप का ब्लाग भी बहुत अच्छा लगा।
आप मेरे ब्लाग पर आएं,आप को यकीनन अच्छा लगेगा।
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