महक-महक कर मोहती, कली भ्रमर को नित्य।
झुलस रहा है शूल चुप, गुंजित प्रीत अनित्य।।
नेह नर्मदा में नहा, हर जड़-चेतन धन्य।
कंकर भी शंकर हुआ, नहीं 'सलिल' सा अन्य।।
बौरा-गौरा झूमते, कर जोड़े ऋतुराज।
जन्म सार्थक हो गया, प्रभु दर्शन कर आज।।
नित पनघट चौपाल को, धरा रहा है धीर।
बेटे भागे शहर को सही न जाए पीर।।
महक प्यार की घोलती, साँस-साँस में गंध।
आस-प्यास में हो तभी, जन्मों का अनुबंध।।
शहरों में जमघट हुआ, पनघट हैं वीरान।
सरपट भागा खुदी से, ख़ुद को छल इंसान।।
मोहन मोह न अब मुझे, कर माया से मुक्त।
आत्म देवता हों सकें, परमात्मा से युक्त।।
स्वेद-परिश्रम का करे, शब्द कलम गुणगान।
श्वास देश को समर्पित, जीवन हो रसखान।।
रोगी मन को भूलकर, तन करता है भोग।
अनजाने बनता 'सलिल', मृत्यु देव का भोग।।
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